महाभारतकाल से आधुनिक युग तक सहस्रधारा: देहरादून की पावन धारा जिसमें छिपा है आपदा का खतरा
Uttarakhand News 19Sep2025/sbkinews.in
देहरादून का सहस्रधारा क्षेत्र प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व का अनमोल संगम है। महाभारतकाल में गुरु द्रोणाचार्य की तपोभूमि के रूप में प्रसिद्ध यह जगह पांडवों की वनवास यात्रा से भी जुड़ी हुई है। ब्रिटिश काल में यह गर्मी से बचने का प्रिय स्थल था।
सहस्रधारा एक प्राकृतिक झरना है, जहां से सल्फरयुक्त औषधीय जलधारा निकलती है, जो त्वचा रोगों और जोड़ों के दर्द में राहत प्रदान करती है। यहां की प्राकृतिक गुफाएं और चट्टानी जल प्रवाह पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। सहस्रधारा नदी का जल पदार्थ मुख्य रूप से बल्दी नदी से आता है, जो नदी के किनारे बसे ग्रामीणों के लिए जीवनदायिनी है।
परंतु आधुनिक दौर में अंधाधुंध निर्माण और अवैध कब्जे से नदी का नालियां होकर बहाव रोका जा रहा है। नदी के प्राकृतिक मार्ग में बाधाएं बन जाने से जल का प्रवाह अवरुद्ध होता है, जिससे बाढ़ और जलभराव की समस्या उत्पन्न होती है। हाल ही में सोमवार को हुई आपदा इसी कारण हुई, जो चेतावनी है कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण जरूरी है।
सरकारी प्रयासों और जागरूकता के माध्यम से सहस्रधारा के इस प्राकृतिक और सांस्कृतिक लाभ को बनाए रखना होगा, ताकि वह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित रह सके। प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए नदी के प्राकृतिक स्वरूप की रक्षा आवश्यक है। सहस्रधारा को संरक्षण और जागरूकता की जरूरत है ताकि यह सुंदर स्थल न केवल पर्यटन स्थल बने बल्कि प्रकृति की आपदा से भी बचा रहे।
चमोली के सेरा गांव में बादल फटने की तबाही, चार दिन बाद बेटी की शादी की खुशियां हुईं मातम
Uttarakhand News 19Sep2025/sbkinews.in
चमोली जिले के नंदानगर ब्लॉक के सेरा गांव में बादल फटने से आई बाढ़ ने एक परिवार की खुशियों को घोर मातम में बदल दिया है। चार दिन बाद होने वाली बेटी की शादी के लिए जो सामान परिवार ने जतन से जुटाया था, वह सब मलबे में बह गया।
यह आपदा परिवार के लिए बड़ी आर्थिक एवं मानसिक चोट लायी है। मलबे में बहा सामान शादी के लिए रखा गया खाद्य सामग्री, कपड़े, गहने और अन्य आवश्यक चीजें शामिल थीं। मेहनत-मजदूरी से जुटाए गए इस सामान के नुकसान से परिवार अब धन-संबंधी संकट में है और उनके सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई है।
बाढ़ के दौरान परिवार के सदस्यों सहित मेहमानों ने जीवन बचाने के लिए जंगल की ओर भागना पड़ा। स्थानीय प्रशासन ने प्रभावित परिवारों को राहत सामग्री उपलब्ध करवाई, लेकिन इस प्राकृतिक आपदा ने उनकी खुशियों को काफ़ी हद तक खत्म कर दिया है।
सेरा गांव के पास स्यारपाखा गदेरे से निकली बाढ़ ने मोक्ष नदी को विकराल बना दिया, जिससे व्यापक तबाही हुई। क्षेत्र में कई घर और दुकानें मलबे में रल गईं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रभावित इलाकों का दौरा किया और राहत कार्यों की समीक्षा की।
यह घटना साफ़ करती है कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और अनुशासित विकास ही ऐसी आपदाओं को रोकने का रास्ता है। सहस्रधारा जैसी प्राकृतिक धरोहरों की सुरक्षा और उचित प्रबंधन आवश्यक है, ताकि पहाड़ों में रहने वाले लोग सुरक्षित रह सकें और उनकी खुशियां बनी रहें।
देहरादून आपदा: भारी बारिश से 150 करोड़ से अधिक का नुकसान, सरकारी संपत्तियों और आवासीय इलाकों को भी किया प्रभावित
Uttarakhand News 19Sep2025/sbkinews.in
देहरादून में हाल ही में हुई भारी बारिश ने कयामत जैसी तबाही मचा दी है। प्रशासन के शुरुआती आंकड़ों के अनुसार, इस प्राकृतिक आपदा में करीब 150 करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ है। इस नुकसान में सड़कों, पेयजल योजनाओं, ऊर्जा निगम की सुविधाओं और कई सरकारी भवनों की भी क्षति शामिल है।
कार्लेगाड़, सहस्रधारा और मालदेवता जैसे क्षेत्रों में आवासीय और व्यावसायिक संपत्तियां भी बाढ़ की चपेट में आ गईं। भारी बारिश की वजह से कई इलाकों में जलभराव और जलस्रोतों में विकृति हुई, जिससे वहां रहने वाले लोगों की जान-माल की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो गया।
सरकार ने नुकसान का त्वरित आकलन करते हुए प्रभावितों को राहत देने के लिए विभिन्न प्रावधान किए हैं। प्रशासन ने प्रभावित इलाकों में राहत शिविर स्थापित किए हैं, साथ ही आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित की जा रही है।
विशेषज्ञ इस भारी तबाही को प्राकृतिक आपदाओं के प्रति सुरक्षा तंत्र और सतत विकास की कमी मान रहे हैं। उन्होंने कहा है कि यदि नदी और जल धाराओं के आसपास अवैध निर्माण को नियंत्रित करने और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी जाए, तो इस तरह की आपदाओं से बचाव किया जा सकता है।
सरकार ने भी इस दिशा में कदम उठाने की बात कही है ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोका जा सके और प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर संरक्षण हो। देहरादून के लोग भी उम्मीद कर रहे हैं कि जल प्रबंधन और पर्यावरणीय उपायों से शहर की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
हरिद्वार में मनसा देवी पहाड़ी पर भारी भूस्खलन, सड़क पर दरारें और रेलवे लाइन को खतरा
Uttarakhand News 19Sep2025/sbkinews.in
हरिद्वार। लगातार हो रही भारी बारिश के कारण मनसा देवी की पहाड़ी पर बड़ा भूस्खलन हुआ है। इस भूस्खलन से हिल बाइपास का एक बड़ा हिस्सा ध्वस्त हो गया है और सड़क पर गहरी दरारें पड़ गई हैं। पहाड़ी की यह चोट न केवल आसपास के बस्तियों को खतरा पहुंचा रही है, बल्कि भीमगोड़ा रेलवे लाइन और हरकी पैड़ी जैसे महत्वपूर्ण इलाकों को भी खतरा है।
उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के वरिष्ठ भूविज्ञानी डॉ. रुचिका टंडन और उनकी टीम ने स्थलीय निरीक्षण और ड्रोन सर्वे करके पूरी स्थिति का आकलन किया। उनके अनुसार मनसा देवी की पहाड़ी और भीमगोड़ा क्षेत्र में करीब 11 पुराने भूस्खलन जोन और 4 नए जोन बन चुके हैं, जो लगातार बढ़ रहे हैं। भूवैज्ञानिकों ने पहाड़ी और सड़क पर उचित ट्रीटमेंट करने के सुझाव दिए हैं।
राजाजी टाइगर रिजर्व के अधिकारियों ने भी स्थानीय लोगों को अलर्ट किया है और सुरक्षित स्थानों पर जाने की सलाह दी है क्योंकि पहाड़ी तेजी से खिसक रही है। इस क्षेत्र में पिछले सप्ताह भारी बारिश हुई, जिसमें मंगलवार रात को 170 मिमी बारिश रिकॉर्ड की गई थी।
भूस्खलन के कारण भीमगोड़ा रेलवे सुरंग के पास रेलवे ट्रैक पर मलबा जमा हो गया है, जिससे देहरादून-हरिद्वार-ऋषिकेश रेल मार्ग ठप हो गया है। रेलवे विभाग ने मलबा हटाने का काम शुरू किया है परंतु बड़े पत्थरों की वजह से ट्रेनों का परिचालन अस्थायी रूप से प्रभावित रहेगा।
स्थानीय प्रशासन तथा संबंधित विभाग भूस्खलन को रोकने और प्रभावित इलाकों की सुरक्षा के लिए संयुक्त रूप से काम कर रहे हैं।
उत्तराखंड आपदा: बेली ब्रिज ने संकटमोचक की भूमिका निभाई, टूटे 38 पुलों के बाद बहाली हुई कनेक्टिविटी
Uttarakhand News 19Sep2025/sbkinews.in
उत्तराखंड में भारी आपदा के दौरान बेली ब्रिज ने महत्वपूर्ण बचाव और राहत कार्यों में अहम भूमिका निभाई है। राज्य की 38 पुल टूट जाने की वजह से कई गांव अलग-थलग पड़ गए थे, जिससे लोगों की जान-माल की सुरक्षा खतरे में थी। ऐसे में लोनिवि (उत्तराखंड जल विद्युत निगम) और बीआरओ (बॉर्डर रोड्स ऑर्गेनाइजेशन) द्वारा बनाए गए बेली ब्रिज ने प्रभावित इलाकों को जोड़कर जीवनधारा बहाल की।
यह अस्थायी पुल बच्चों को स्कूल पहुंचाने, मरीजों को अस्पताल ले जाने और किसानों को अपनी फसल बाजार तक पहुंचाने में मददगार साबित हो रहे हैं। इन बेली ब्रिजों के निर्माण से गांवों के बीच संपर्क बेहतर हुआ है, जिससे जीवन की सामान्य गतिविधियां बहाल हुई हैं।
विशेष रूप से सहस्रधारा घाटी परिसर और अन्य बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बेली ब्रिज ने राहत सामग्री पहुंचाने और बचाव कार्यों में भी सहजता लाई है। स्थानीय प्रशासन और आपदा प्रबंधन समूह बेली ब्रिज के माध्यम से प्रभावित इलाकों तक पहुंच बना कर तेजी से सहायता कर रहे हैं।
यह रणनीतिक कदम आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में उत्तराखंड की तत्परता और तकनीकी कुशलता को दर्शाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए बेली ब्रिज जैसे अस्थायी समाधान महत्वपूर्ण हैं, जो जीवन और सुरक्षा को सुरक्षित रखते हैं, फिर जबकि स्थायी पुनर्निर्माण के कार्य भी तेजी से चल रहे हैं।
उत्तराखंड सरकार और केंद्र सरकार की मदद से इस आपदा से उबरने के लिए निरंतर प्रयास जारी हैं। बेली ब्रिज ने इस मुसीबत की घड़ी में जनता का भरोसा बढ़ाया है और आंशिक रूप से भय को कम किया है।


