शिबू सोरेन नहीं रहे: जनजातीय चेतना की मशाल बुझी, लेकिन संघर्ष की लौ अमर रहेगी

Ex CM shibu soren

Ex CM shibu soren/रांची/नई दिल्ली – देश के सबसे बड़े जनजातीय नेताओं में शुमार, झारखंड आंदोलन के पुरोधा और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक शिबू सोरेन का सोमवार रात 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उनके निधन की खबर आते ही झारखंड समेत पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। राजनीति, सामाजिक क्षेत्र और विशेषकर आदिवासी समुदाय के लिए यह एक अपूरणीय क्षति है।


एक युग का अंत

“गुरुजी” के नाम से प्रसिद्ध शिबू सोरेन न केवल एक राजनेता थे, बल्कि आदिवासी अधिकारों की आवाज थे, जिन्होंने जंगल, ज़मीन और जल के लिए दशकों तक संघर्ष किया। झारखंड राज्य के गठन से लेकर केंद्र सरकार में मंत्री पद तक, उनका सफर संघर्ष, बलिदान और जनसेवा की मिसाल है।


 

जीवन परिचय और राजनीतिक सफर

  • जन्म: 11 जनवरी 1944, जामताड़ा, बिहार (अब झारखंड)

  • पिता का नाम: सोबरण सोरेन (जमींदारों के अत्याचार के खिलाफ लड़ते हुए मारे गए थे)

  • राजनीतिक शुरुआत: 1960 के दशक में

  • प्रमुख भूमिका: झारखंड आंदोलन के अगुआ, JMM के संस्थापक अध्यक्ष

  • सांसद: 8 बार लोकसभा सदस्य

  • पद: कोयला मंत्री (2004), झारखंड के मुख्यमंत्री (तीन बार)


व्यक्तिगत अनुभव: एक पत्रकार की नज़र से ‘गुरुजी’

10 वर्षों से मैं राजनीतिक पत्रकारिता कर रहा हूं, और शिबू सोरेन जैसा ज़मीनी नेता बहुत कम देखने को मिला है।
2013 में जब मैंने पहली बार रांची में उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस कवर की थी, तो उनकी सादगी और बोलने का ढंग मुझे अंदर तक छू गया। वे कैमरों से ज़्यादा जनता की आंखों में बात करने वाले नेता थे।

उन्होंने एक बार मुझसे कहा था:

“पत्रकार बुराई दिखाते रहो, लेकिन आदिवासी की पीड़ा को कभी हल्के में मत लेना। उसकी चुप्पी सबसे बड़ी चीख होती है।”

उस दिन मुझे समझ में आया कि ये नेता सिर्फ कुर्सियों का खिलाड़ी नहीं, संवेदना का प्रहरी है।


झारखंड आंदोलन: संघर्ष से राज्य तक का सफर

झारखंड राज्य की मांग कोई रातोंरात पैदा हुई भावना नहीं थी। यह आदिवासियों के अस्तित्व, भाषा, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा की लड़ाई थी, जिसकी अगुवाई शिबू सोरेन ने की।
1980 और 90 के दशक में उन्होंने केंद्र सरकार पर लगातार दबाव बनाया। 2000 में आखिरकार झारखंड भारत का 28वां राज्य बना, और इसका सबसे बड़ा श्रेय ‘गुरुजी’ को जाता है।


आदिवासी चेतना के प्रतीक

शिबू सोरेन ने हमेशा जंगलों और आदिवासी ज़मीनों की लूट के खिलाफ आवाज़ उठाई। चाहे वह खनन माफिया हो या कॉर्पोरेट लॉबी—उन्होंने अपने समुदाय के लिए कभी समझौता नहीं किया।

उनकी विचारधारा थी:

“सरकारें आती जाती हैं, लेकिन आदिवासी की जमीन नहीं जानी चाहिए।”


विवाद और चुनौती

राजनीतिक जीवन में उनका दामन हमेशा साफ नहीं रहा। 2006 में एक हत्या के मामले में उन्हें दोषी ठहराया गया, लेकिन बाद में उच्च न्यायालय से बरी हो गए।
इसने उनकी छवि को नुकसान पहुँचाया, लेकिन जनता का विश्वास उनसे कभी नहीं डगमगाया।


राजनीतिक विरासत: हेमंत सोरेन के कंधों पर

उनके पुत्र और वर्तमान झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अब ‘गुरुजी’ की राजनीतिक और वैचारिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। शिबू सोरेन ने हमेशा बेटे को जनता के साथ जुड़ने की सीख दी।

हेमंत ने एक भावुक ट्वीट में लिखा:

“पिताजी नहीं रहे। उनका आशीर्वाद अब हमारे विचार और कर्म में जीवित रहेगा।”


 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर के माध्यम से शोक व्यक्त करते हुए कहा कि शिबू सोरेन जी का निधन अत्यंत दुखद है और यह राष्ट्र के लिए एक अपूरणीय क्षति है।

“शिबू सोरेन जी आदिवासी अधिकारों के प्रखर प्रहरी थे। उनका जीवन प्रेरणा है।”

कांग्रेस नेता राहुल गांधी, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, ओडिशा के नवीन पटनायक, और झारखंड के सभी दलों के नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।

 


अब क्या होगा?

झारखंड सरकार ने तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया है। अंतिम संस्कार उनके गृह ज़िले दुमका में पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।
JMM कार्यकर्ता, सामाजिक संगठनों और जनजातीय समुदायों के लोग हजारों की संख्या में उनके अंतिम दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं।


निष्कर्ष: शिबू सोरेन भले ही नहीं रहे, लेकिन उनका विचार, संघर्ष और संस्कार अमर रहेगा

राजनीति में बहुत लोग आते हैं, लेकिन विचारधारा की मशाल जलाने वाले नेता विरले ही होते हैं। शिबू सोरेन ऐसे ही नेता थे।
उनके निधन के साथ एक युग समाप्त हो गया, लेकिन उनकी सोच, उनका संघर्ष और आदिवासी समाज के प्रति उनका प्रेम सदियों तक प्रेरणा देगा।

शिबू सोरेन के निधन पर राष्ट्र की श्रद्धांजलि पढ़ें पूरी रिपोर्टFor moreHindi News

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