ईडी ने पांच राज्यों में बैंक धोखाधड़ी के दो मामलों की जांच के तहत छापेमारी की

Delhi News 03Sep2025
नई दिल्ली: प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बैंक ऋण धोखाधड़ी और मनी लांड्रिंग के दो मामलों की जांच के तहत मंगलवार को तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और गोवा में छापेमारी की। यह कार्रवाई चेन्नई की अरविंद रेमेडीज कंपनी और उसके प्रवर्तक अरविंद बी. शाह के खिलाफ मनी लॉडिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत की गई है।
परिवर्तन निदेशालय ने बताया कि ये मामले अक्टूबर 2016 में सीबीआई द्वारा दर्ज प्राथमिकी से संबंधित हैं, जिनमें पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) के नेतृत्व वाले बैंक समूह से करीब 637 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का आरोप है। जांच के दौरान कंपनी के वित्तीय वर्ष 2009-10 से 2014-15 तक के ऑडिटेड वित्तीय दस्तावेज, कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के रिकॉर्ड और 294 बैंक खातों का विश्लेषण किया गया।
ईडी ने पाया कि बैंक फंड्स को प्रमोटरों के नियंत्रित शेल कंपनियों के माध्यम से siphoning किया गया। छापेमारी के दौरान चेन्नई, कांचीपुरम, कोलकाता और गोवा के विभिन्न परिसरों को निशाना बनाया गया।
ईडी इस मामले में गहन जांच कर रही है और आरोपितों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। यह कार्रवाई बैंकिंग क्षेत्र में वित्तीय अपराधों और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को हुए नुकसान को रोकने के लिए की जा रही है।
सामूहिक दुष्कर्म के दोषियों को उम्र कैद के बावजूद क्षमादान मांगने का संवैधानिक व वैधानिक अधिकार: सुप्रीम कोर्ट

Delhi News 03Sep2025
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिगों से सामूहिक दुष्कर्म के मामलों में उम्र कैद काट रहे दोषियों को क्षमादान (सजा माफी) मांगने का संवैधानिक और वैधानिक अधिकार दिया है। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने आईपीसी की धारा 376डीए की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया।
धारा 376डीए के तहत 16 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म के दोषियों को आजीवन कारावास की सजा मिलती है, जबकि 376डीबी के अंतर्गत दोषी को 12 वर्ष की सजा दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सजा भले ही आजीवन कारावास हो, दोषी के पास संविधान के अनुच्छेद 72 (राष्ट्रपति) और अनुच्छेद 161 (राज्यपाल) के तहत सजा माफी के लिए आवेदन करने का अधिकार है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यह अधिकार वैधानिक भी है, क्योंकि प्रत्येक राज्य की सजा माफी नीति इन मामलों पर लागू होती है। यह फैसला दोषियों के सुधार और पुनर्वास के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, हालांकि अदालत ने अपराध की गंभीरता को भी स्वीकार किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह बड़ा सवाल अभी खुला रखा है कि धारा 376डीए में केवल आजीवन कारावास का प्रावधान संवैधानिक है या नहीं, जिसे किसी उपयुक्त मामले में आगे उठाया जा सकता है।
यह निर्णय न्यायिक संतुलन और सुधारात्मक न्याय प्रणाली के महत्व को दर्शाता है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के लिए 12 वकीलों और 14 न्यायिक अधिकारियों को जज नियुक्त करने की सिफारिश

Delhi News 03Sep2025
इलाहाबाद हाई कोर्ट में 12 वकीलों और 14 न्यायिक अधिकारियों को जज नियुक्त करने की सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने सिफारिश की है। यह सिफारिश 1 सितंबर, 2025 को हुई बैठक में की गई जिसमें कुल 26 नाम शामिल हैं। जिन 12 वकीलों को नियुक्ति के लिए चुना गया है, उनमें विवेक सरन, अदनान अहमद, विवेक कुमार सिंह, गरिमा प्रसाद, सुधांशु चौहान, अवधेश कुमार चौधरी, स्वरूपमा चतुर्वेदी, जय कृष्ण उपाध्याय, सिद्धार्थ नंदन, कुणाल रवि सिंह, इंद्रजीत शुक्ला और सत्य वीर सिंह शामिल हैं।
इन नियुक्तियों से इलाहाबाद हाई कोर्ट की न्यायिक क्षमता में सुधार होगा और बढ़ते मुकदमों के बोझ को कम करने में मदद मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की कोलेजियम ने यह प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा है।
यह नियुक्तियां देश के सबसे बड़े हाई कोर्ट की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही हैं और इससे न्याय की व्यवस्था में तेजी आने की उम्मीद है।
सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति-राज्यपाल के फैसलों पर समय सीमा के पालन को लेकर विवाद

Delhi News 03Sep2025
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने प्रेसिडेंशियल रिफरेंस मामले की सुनवाई के दौरान यह सवाल उठाया कि यदि राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा विधेयकों पर तय की गई समय सीमा का पालन नहीं होता है तो क्या होगा। पीठ ने तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा कि क्या कोर्ट तय कर सकता है कि विधेयक पर निर्णय लेने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए कोई समय सीमा हो।
पीठ ने स्पष्ट किया कि वह केवल संवैधानिक प्रश्नों की व्याख्या करेगा न कि व्यक्तिगत मामले देखेगा। सुनवाई के दौरान यह भी माना गया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 में राष्ट्रपति और राज्यपाल को ‘जल्द से जल्द’ ही विधेयकों पर फैसला लेने का अधिकार दिया गया है लेकिन इनमे कोई निश्चित समय अवधि नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि न्यायालय समय सीमा निर्धारित करने से संविधान में संशोधन करने जैसी स्थिति बन सकती है। साथ ही, व्यक्तिगत मामलों में विलंब होने पर कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है, लेकिन इसे एक सार्वभौमिक नियम नहीं बनाया जा सकता।
सुनवाई अभी जारी है और अगली सुनवाई में इस संवैधानिक दुविधा के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से बहस होगी। यह मामला भारतीय संवैधानिक व्यवस्था के संचालन और शक्तियों के संतुलन के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
कन्हैया लाल हत्या मामले में जावेद की जमानत के खिलाफ याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की

Delhi News 03Sep2025
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उदयपुर के दर्जी कन्हैया लाल की हत्या के मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। अदालत ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) और कन्हैया लाल के बेटे यश तेली द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें मुख्य आरोपी मोहम्मद जावेद को दी गई जमानत के आदेश को चुनौती दी गई थी।
जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने राजस्थान हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से परहेज करते हुए कहा कि इस मामले में हाई कोर्ट ने जमानत देने का जो निर्णय दिया है, उस पर सुप्रीम कोर्ट को संदेह नहीं है।
एनआइए और यश तेली के वकील ने दलील दी थी कि जावेद की भूमिका इस हत्या में गंभीर है और उसने हमलावरों को कन्हैया लाल के ठिकाने की जानकारी दी थी, जिससे यह हत्या अंजाम दी गई। प्रकरण में यह हत्या साम्प्रदायिक तनाव के बीच हुई थी।
कन्हैया लाल की निर्मम हत्या 28 जून 2022 को हुई थी, जिसमें दो आरोपितों ने उनकी दुकान में घुसकर उन्हें मार डाला था। इस मामले से जुड़ी कई जांचें चल रही हैं, जिनमें जावेद के अन्य साथियों की भूमिका भी शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से जमानत प्रक्रिया और विधिक प्रक्रियाओं पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा और मामले की सुनवाई आगे जारी रहेगी।
Delhi News 03Sep2025/sbkinews.in


